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Thursday, December 18, 2014

सुन और कर

यह ऐसा करने के लिए मूर्खता है लोगों को आप को भगवान का पालन करें जब आप अजीब हैं बारे में सोचना होगा एक व्यक्ति भगवान क्या चाहता है तो वे संस्कृति के खिलाफ लड़ना होगा। वह व्यक्ति नूह की तरह हो जाएगा संस्कृति नूह के दिनों की तरह पाप से भरा है।

लोग पाप पर नकली होगा और वे यीशु के अनुयायी नफरत करेंगे परमेश्वर के न्याय नूह के दिनों की तरह आ रहा है लेकिन दुनिया भगवान की तरह खारिज कर दिया। भगवान का निर्णय तब आता है जब दुनिया हैरान होंगे।

बाइबिल की आखिरी किताब में भगवान का निर्णय नूह के बाढ़ में बारिश के समान है। एक व्यक्ति भगवान के क्रोध का अनुभव नहीं करना चाहती

एक व्यक्ति को क्रोध से बच सकते हैं, इलाज पश्चाताप है यीशु के प्रकोप की वजह से मानव जाति आ रहा है कि कारण पाप किया है। यीशु के क्रूस मानव आत्मा साफ कर सकते हैं समस्या यह है कि लोगों को पाप से प्यार है और यीशु से नफरत करता है।

फैसले की बारिश आ रहा है। आप यीशु अपने पापों से पश्चाताप और पालन करने की जरूरत है।



उत्पत्ति 7:5-24

 

5 नूह ने उन सभी बातों को माना जो यहोवा ने आज्ञा दी।
वर्षा आने के समय नूह छः सौ वर्ष का था। नूह और उसका परिवार बाढ़ के जल से बचने के लिए जहाज़ में चला गया। नूह की पत्नी, उसके पुत्र और उनकी पत्नियाँ उसके साथ थीं। पृथ्वी के सभी शुद्ध जानवर एवं अन्य जानवर, पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले सभी जीव नूह के साथ जहाज में चढ़े। इन जानवरों के नर और मादा जोड़े परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जहाज में चढ़े। 10 सात दिन बद बाढ़ प्रारम्भ हुई। धरती पर वर्षा होने लगी।
11-13 दूसरे महीने के सातवें दिन, जब नूह छः सौ वर्ष का था, जमीन के नीचे के सभी सोते खुल पड़े और ज़मीन से पानी बहना शुरु हो गया। उसी दिन पृथ्वी पर भारी वर्षा होने लगी। ऐसा लगा मानो आकाश की खिड़कियाँ खुल पड़ी हों। चालीस दिन और चालीस रात तक वर्षा पृथ्वी पर होती रही। ठीक उसी दिन नूह, उसकी पत्नी, उसके पुत्र शेम, हाम और येपेत और उनकी पत्नियाँ जहाज़ पर चढ़े। 14 वे लोग और पृथ्वी के हर एक प्रकार के जानवर जहाज़ में थे। हर प्रकार के मवेशी, पृथ्वी पर रेंगने वाले हर प्रकार के जीव और हर प्रकार के पक्षी जहाज़ में थे। 15 ये सभी जानवर नूह के साथ जहाज़ में चढ़े। हर जाति के जीवित जानवरों के ये जोड़े थे। 16 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सभी जानवर जहाज़ में चढ़े। उनके अन्दर जाने के बाद यहोवा ने दरवाज़ा बन्द कर दिया।
17 चालीस दिन तक पृथ्वी पर जल प्रलय होता रहा। जल बढ़ना शुरु हुआ और उसने जहाज को जमीन से ऊपर उठा दिया। 18 जल बढ़ता रहा और जहाज़ पृथ्वी से बहुत ऊपर तैरता रहा। 19 जल इतना ऊँचा उठा कि ऊँचे—से—ऊँचे पहाड़ भी पानी में डूब गए। 20 जल पहाड़ों के ऊपर बढ़ता रहा। सबसे ऊँचे पहाड़ से तेरह हाथ ऊँचा था।
21-22 पृथ्वी के सभी जीव मारे गए। हर एक स्त्री और पुरुष मर गए। सभी पक्षि और सभी तरह के जानवर मर गए। 23 इस तरह परमेश्वर ने पृथ्वी के सभी जीवित हर एक मनुष्य, हर एक जानवर, हर एक रेंगने वाले जीव और हर एक पक्षी को नष्ट कर दिया। वे सभी पृथ्वी से खत्म हो गए। केवल नूह, उसके साथ जहाज में चढ़े लोगों और जानवरों का जीवन बचा रहा। 24 और जल एक सौ पचास दिन तक पृथ्वी को डुबाए रहा।

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